आजादी की 69वीं वर्षगांठ डासना जेल के कैदियों के लिए भी खास थी। जेल में बंद करीब 4,000 कैदियों ने अपना खुद का अखबार निकाला है । इस अखबार के संपादक खुद जेल अधीक्षक हैं, जबकि पूरी संपादकीय टीम कैदियों की है। पत्रकारिता के काम में लगे इनमें से अधिकतर कैदी ऐसे हैं, जो उच्च शिक्षित हैं।
आठ पेज के इस त्रैमासिक अखबार का नाम ‘डासना टाइम्स’ है। इस अखबार में जेल की खबर के अलावा कैदियों की ओर से किए जाने वाले कार्यक्रमों और उनकी समस्याओं को प्रकाशित किया जाएगा। जेल अधीक्षक आरआर यादव ने कहा, ‘अखबार निकालने का प्रस्ताव छह महीने पहले कैदियों की ओर से ही आया था। एनआरएचएम घोटाले में जेल में बंद अतुल निगम ने यह प्रस्ताव दिया था।’
सुरक्षा की चिंताओं को लेकर यादव ने कहा, ‘अखबार को छपने के लिए भेजने से पहले हर खबर की पूरी पड़ताल की जाती है। इसीलिए जेल के अधीक्षक को ही संपादक बनाया गया है।’ यादन ने कहा कि वह खुश हैं कि इस प्रयोग के जरिए कैदियों को अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर मिल सकेगा। इन कैदियों में से कई बहुत अच्छे लेखक और कवि भी हैं।
एनआरएचएम घोटाले में जेल में बंद अतुल निगम जर्नलिज्म बैकग्राउंड के हैं, वह सात सदस्यीय संपादकीय टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। इस टीम में पूर्व बैंक मैनेजर सुभाष झा भी शामिल हैं, जो दहेज हत्या के मामले में सात साल की सजा काट रहे हैं। जेल में रहने के दौरान ही वह करीब 700 कविताएं लिख चुके हैं।
कैदी चालवतात वृत्तपत्र
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