‘काही’ जात्यात,’बरेच’ सुपात…

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सुना है कि एबीपी ग्रुप ने 700 मीडियाकर्मियों से इस्तीफा लिखवा लिया है। दैनिक भास्कर में भी पुराने कर्मचारियों से इस्तीफा लिखवाया जा रहा है। दमन का यह खेल पूरे मीडिया जगत में चल रहा है। मजीठिया वेज बोर्ड की वजह से प्रिंट मीडिया में कुछ ज्यादा ही कहर बरपाया जा रहा है। चाहे राष्ट्रीय सहारा हो, दैनिक जागरण हो, हिन्दुस्तान हो या फिर अमर उजाला लगभग सभी समाचार पत्रों में कर्मचारियों में आतंक का माहौल बना दिया गया है।

दूसरों की लड़ाई लड़ने का दम भरने वाले मीडियाकर्मी अपनी ही लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं। सहमे हुए हैं। डरे हुए हैं। जो मीडियाकर्मी आगे बढ़कर कुछ साहस दिखाते हैं, उन्हें प्रबंधन का निशाना बना दिया जा रहा है। अखबार मालिकानों और प्रबंधनों ने चाटुकार, दलाल, बेगैरत और जमीर बेच चुके कर्मचारियों को अपना मुखबिर बना रखा है। मजीठिया न देना पड़े, इसलिए पुराने कर्मचारियों का टारगेट बनाया जा रहा है। दमन के इस खेल में सभी मीडियाकर्मी शांत होकर अपना भारी नुकसान कर रहे हैं। यह सोचकर कि ‘मैं तो बचा हूं, रहूंगा, खुश हो रहे हैं। यह नहीं समझ रहे हैं कि जल्द ही उनका भी नंबर आने वाला है।

दरअसल अखबार मालिकान किसी भी हालत में मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से वेतन और एरियर देना नहीं चाहते। यही वजह है कि पुराने कर्मचारियों पर गाज गिर रही है। मालिकान किसी भी तरह से रेगुलर कर्मचारियों को निकालकर कांटेक्ट बेस पर कर्मचारी रखने की नीति बना रहे हैं। इसलिए जो कर्मचारी यह सोच रहे हैं कि वह बच जाएंगे, वह भारी भूल कर रहे हैं। कर्मचारियों को लामबंद होकर इस दमन के खिलाफ आवाज उठानी होगी। कर्मचारियों को यह समझना होगा कि यदि सबने मिलकर यह लड़ाई लड़ ली तो मजीठिया भी मिलेगा और नौकरी भी और ऐसे ही डरते रहे तो न नौकरी बचेगी और न ही पैसा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट में अखबार मालिकों को खिलाफ अवमानना का केस चल रहा है। ये लोग कब तक बचेंगे।

हम लोग हर हाल में जीतेंगे पर जो लोग कमजोर बने हुए हैं उन्हें तो मालिकान और प्रबंधन डरा-धमकाकर भगा ही देंगे। रोज बड़े स्तर पर कर्मचारी निकाले जा रहे हैं। एक-एक कर सबका नंबर आने वाला है। राष्ट्रीय सहारा सहारा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मुकुल राजवंशी और उत्पल कौशिक को निकाला गया तो। कर्मचारी प्रबंधन का खुलकर विरोध न कर पाएं। यही वजह रही कि देहरादून में अरुण श्रीवास्तव को निकाल दिया गया। कुछ दिन बाद में हक की लड़ाई की अगुआई कर रहे 21 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया। हाल ही में 25 कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है। इनका 17 महीने का बकाया वेतन संस्था पर है। न तो उनका पैसा दिया जा रहा है और न ही नौकरी पर लिया जा रहा है। जरा-जरा की बात पर पूरे दिन शोर मचाने वाले टीवी चैनल, व प्रिंट मीडिया में अपने बीच में सताये जा रहे साथियों के लिए कोई जगह नहीं है। अब समय आ गया है कि मीडियाकर्मी संगठित होकर अपने दमन के खिलाफ हुंकार भरें। यदि अब भी चुप रहे तो अपने तो दुर्गति करोगे ही साथ ही में अपने बच्चों से भी निगाह नहीं मिला पाओगे।

राष्ट्रीय सहारा और दैनिक जागरण समेत कई अखबारों से बर्खास्त किए गए कर्मचारी बेरोजगार होकर भी प्रिंट मीडियाकर्मियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। अंदर काम कर रहे कर्मचारियों को यह समझना होगा कि थोड़ा बहुत भय मालिकानों और प्रबंधनों में यदि है तो वह इस लड़ाई का ही है। कर्मचारियों में तालमेल का अभाव, नौकरी जाने का डर, लालच और चाटुकारिता का फायदा  उठाकर मालिकान और प्रबंधन कर्मचारियों का उत्पीड़न कर रहे हैं। सभी लामबंद होकर लड़ लिए तो मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से वेतन भी मिलेगा और एरियर भी। यदि इसी तरह से डरते रहे।

एक-दूसरे से दूरियां बनाते रहे तो न तो पैसा मिलेगा और न ही नौकरी बचेगी। एक-एक कर सभी को निशाना बना दिया जाएगा। जब जागोगे तो समय निकल चुका होगा। जब उठोगे प्रबंधन उठने लायक नहीं छोड़ेगा। यह समझ लो कि मजीठिया की लड़ाई ऐसी लड़ाई है जो मीडियाकर्मियों की जिंदगी बदल कर रख देगी। इसे सब मिलकर मजबूती से लड़ें। सुप्रीम कार्ट का आदेश है तब भी डर रहे हो। यह जान लो कि मजीठिया मांगने पर जो साथी बर्खास्त किए गए हैं वे सभी ससम्मान अंदर जाएंगे तथा मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से पूरा वेतन और एरियर पाएंगे। इन कर्मचारियों का बाद में मालिकान और प्रबंधन भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। जो कर्मचारी अंदर बैठकर सेटिंग में लगे हैं, उनकी सबसे अधिक दुर्गति होगी। सोचे जो 700 कर्मचारी एबीपी समूह ने निकाले हैं। जो दैनिक भास्कर या अन्य अखबारों से निकाले जा रहे हैं। वे सभी हमारे ही बीच के हैं। क्या उनकी जरूरतें किसी से कम हैं। सोचो, जिस दिन आप निकाले जाओगे और आपके बीच के दूसरे कर्मचारी मूकदर्शक बने रहेंगे तो उनके बारे में आपकी क्या सोच होगी ?

चरण सिंह राजपूत
charansraj12@gmail.com

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