प्रत्येक actकर्मचारी सेवा निवृति तक सेवायें देता है और उसे सेवानिवृति के समय या तुरंत बाद एक माह के अंदर ग्रेचुइटी दी जानी चाहिए। ग्रेचुइटी अधिनियम 1972 की धारा 9 में इस क़ानून का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान दिया हुआ है परन्तु सजा की अवधि काम से काम 3 से 6 माह और अधिकतम 2 वर्ष की है जिसे 28 वर्ष पूर्व 1987 में जोड़ा गया था परन्तु कानून का उल्लंघन करने वालो की संख्या बढ़ती ही जा रही है। नियोजक कोर्ट में जीतने के बाद भी कई मामलो में न तो अपील करता है और न ही राशि का भुगतान करता है और उस ग्रेचुइटी निर्गित राशि की वसूली लैंड रिकवरी एक्ट में होती है, वह भी कम से कम एक पंचवर्षीय योजना तक नहीं हो पाती और तब तक उस व्यक्ति के जीवन का आख़री पड़ाव ही आ जाता है।
इस एक्ट के प्रावधानों का कर्मचारिओं को शीघ्र लाभ मिल सके और दोषी को दण्ड का भय इतना हो कि उसे जेल जाना पड़े तो यह एक्ट प्रभावी रहेगा और इसके लिए धारा 9 में निम्न संशोधन किये जाने के लिए अपने सुझाव / विचार लिख रहा हूँ :-
(1) प्रथम तो यह की इस एक्ट में प्रॉसिक्यूशन के लिए स्वयं प्रॉसिक्यूशन कार्यवाही करने का अधिकार दिया जावे और सक्षम सरकार से प्रॉसिक्यूशन की अनुमति का प्रावधान समाप्त किया जावे।
(2) धारा 9 में कम से कम 3 व 6 माह की सजा का प्रावधान दिया गया है उसे 5 वर्ष किया जावे और जुर्माने की राशि जो 20000 तक दे रखी है,उसे 1 लाख से 5 लाख तक किया जावे तथा उस जुर्माने की राशि को कर्मचारी को दिलाये जाने का प्रावधान भी क़ानून में जोड़ा जावे।
(3) ऐसे केस के निर्णय की सीमा अवधि 1 वर्ष करने के साथ साथ, इसे अजमानतीय अपराध भी माने जाने का संशोधन जोड़ा जावे।
बृजेन्द्र बिहारी शर्मा एडवोकेट,
भरतपुर
राजस्थान
atalbbihari@gmail.com