जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में देश भर के मीडियाकर्मियों की तरफ से सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा ने अपने फेसबुक वॉल पर मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई का ब्यौरा साझा किया है, पढ़िए आप भी…
दिनांक 8/11/2016 को हुए जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले की सुनवाई का विस्तृत ब्योरा पेश है… वास्तविकता के आधार पर लिख रहा हूं जो कि न्यायालय के आदेश में इंगित नहीं भी हो सकता है… न्यायालय इस बात से आहत और विवश दिख रही थी कि उसके द्वारा आदेशित किए जाने के बावजूद लेबर कमिश्नर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने सम्बंधित रिपोर्ट को गोल मोल कर रहें हैं।
न्यायाधीश महोदय ने कहा कि अब हम इस तरह की मॉनीटरिंग नहीं कर पाएंगे और मुख्य सचिव को ही जिम्मेवार मानते हुए कार्यवाही निर्देशित करेंगे। एडवोकेट श्री कोलिन द्वारा अपने रिपोर्ट का कुछ हिस्सा न्यायालय के सामने रखा गया और बताया गया कि कुछ संस्थानों में स्थाई कर्मचारी दर्शाये ही नहीं गए हैं जिन पर मजीठिया लागू किया जा सकता है, वहां सिर्फ तदस्थ एवं ठेका कर्मचारी हैं जो मजीठिया से बाहर हैं।
मैंने (उमेश शर्मा) ने कहा कि लेबर कमिश्नर की रिपोर्ट में जहाँ भी यह आ गया है कि कुछ संस्थानों ने मजीठिया लागू नहीं किया गया है, उन पर तो सीधा सीधा न्यायालय के अवमानना का मामला बनता है और उनको अवमानना का दोषी मान कर कार्यवाही की जाये। एडवोकेट श्री परमानन्द पांडेय ने यह मुद्दा उठाया कि जहाँ भी कर्मचारी मजीठिया का मुद्दा उठाते हैं वहां उनको निकाल दिया गया है या स्थानांतरित कर दिया गया है जो गैरकानूनी है और इस पर किसी लेबर कमिश्नर ने कोई कार्यवाही नहीं की है। श्री कॉलिन द्वारा अन्य भी कई सुझाव दिए गए जिनका विस्तार से उल्लेख करना यहाँ आवश्यक नहीं है.
न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि किसी सेवानिवृत न्यायाधीश की एक कमेटी बनाई जाये जो इन सब पर विस्तृत कार्यवाही करे और उसकी रिपोर्ट पर ही सुप्रीम कोर्ट आगे कार्यवाही करे.
ऐसा हो सकता है कि न्यायालय अपने अगले आदेश में कोई समिति बनाने की प्रक्रिया बताये।
मैं अपने पूर्व अनुभव के अनुसार यह बात पिछली सुनवाई के बाद श्री परमानन्द पांडेय, पुरुषोत्तम जी, शशि कान्त सिंह को बता चुका हूँ और मैं इस बात की अनुमोदन भी करता हूँ और सभी साथी अधिवक्तागणों से अनुरोध करता हूँ कि हम सब न्यायाधीश के नेतृत्व में मानीटरिंग कमेटी बनाए जाने की बात पर न्यायालय को अपना सहयोग दें. उसमें यह बात मुख्य रूप से होनी चाहिए कि समिति सभी संस्थानों से उनके कर्मचारियों के वेतनमान का विवरण मांगे और सब कुछ साफ हो जायेगा कि किसको क्या मिल रहा है और क्या मिलना चाहिए था। यह सब समयबद्ध हो और उसके अनुसंशा पर सुप्रीम कोर्ट आदेश पारित करे और अवमानना तय करे।
मेरे विचार में लीगल इश्यूज वाली नाव अगर इसके पहले चल पड़ी तो जरूर डूबेगी। यह मेरे सीमित कानूनी ज्ञान से मेरा व्यक्तिगत विचार है। एक बात और स्पष्ठ है कि प्रबंधकों को राहत की सांस अानी शुरू हो गयी है क्योंकि उनकी तरफ से कोई नामचीन अधिवक्ता जो पहले न्यायालय के समक्ष खड़े रहते थे, वो इस सुनवाई में नहीं थे सिवाय श्री पी पी राव के जो कि अगली सुनवाई में लीगल इश्यूज का जवाब देंगे.
लेखक एडवोेकेट उमेश शर्मा सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के जाने माने वकील हैं.