पत्रकारितेतील आदर्श कोण ?

0
1030

आज माध्यमात 80 टक्के स्टेनोग्राफर आहेत,जे हळूहळू कार्पोरेट स्टेनोग्राफर होत आहेत.हे मत व्यक्त केलंय,ज्येष्ट पत्रकार पी.साईनाथ यांनी.

हिरोशिमा-नगासाकी पर बम गिराए जाने के बाद The Times of India ने अपने 11 नंबर पेज पर शीर्षक लगाया था, “Excellent results in raid on Nagasaki” और इसके नीचे एक और ख़बर थी जिसका शीर्षक था, “Uranium shares go up 90 points after Hiroshima.” इस घटना पर पूरी दुनिया में वाइट हाउस से जारी प्रेस रिलीज़ आधारित जो पत्रकारिता की गई, उसने पत्रकारिता में उसी वक्‍त दो स्‍कूल बना दिए- एक पत्रकारों का और दूसरा स्‍टेनोग्राफरों का। आज पत्रकारिता में 80 फीसदी स्‍टेनोग्राफर हैं जो धीरे-धीरे कॉरपोरेट स्‍टेनोग्राफर होते जा रहे हैं। ये कहना है जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ।

दिल्ली के कॉन्‍सटिट्यूशन क्‍लब में आयोजित एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान पी. साईनाथ ने पत्रकारिता को लेकर कई अन्य बातें भी बताईं, जिसमें से एक यूं हैं…. हिरोशिमा-नगासाकी पर अमेरिकी बमबारी का जश्‍न मनाते हुए जब न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के (अमेरिकी सैन्‍य विभाग प्रायोजित) पत्रकार विलियम लॉरेन्‍स ‘बम के सौंदर्य की तुलना बीथोवन की सिम्‍फनी के ग्रैंड फिनाले’ से और बमबारी से पैदा हुए ‘मशरूम की आकृति के धुएं के गुबार की तुलना स्‍टैच्‍यू ऑफ लिबर्टी’ से कर रहे थे, ठीक उस वक्‍त सिर्फ एक फ्रीलांसर पत्रकार था जिसने इस घटना का सच सामने लाने के लिए अपने खर्च पर हिरोशिमा जाने का फैसला किया। ऑस्‍ट्रेलिया के इस पत्रकार का नाम था विल्‍फ्रेड बर्चेट। उसकी बेहतरीन रिपोर्टिंग ‘द डेली एक्‍सप्रेस’ में छपी।

विल्‍फ्रेड बर्चेट की रिपोर्टिंग का वैश्विक मीडिया के समक्ष खण्‍डन करने के लिए टोक्‍यो में अमेरिकी मैनहैटन प्रोजेक्‍ट के ब्रिगेडियर जनरल थॉमस फैरेल ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेन्‍स रखी। बर्चेट को पता चला कि प्रेस कॉन्‍फ्रेन्‍स उसी के ऊपर है, तो वह वहां पहुंच गया। उसने ब्रिगेडियर से कुछ सवाल किए। सवालों से असहज होकर ब्रिगेडियर ने उससे कहा कि वह जापान के साम्राज्‍यवादी प्रोपेगेंडा का शिकार हो गया है। बाहर निकलते ही एलाइड ताकतों के प्रमुख के निर्देश पर उसका पासपोर्ट ज़ब्‍त कर लिया गया, उसे हिरासत में ले लिया गया और हिरोशिमा-नगासाकी बमबारी की रिपोर्टिंग पर प्री-सेंसरशिप लगा दी गई।

छूटने के बाद दोबारा जब बर्चेट ने पासपोर्ट बनवाया तो फिर से गुप्‍तचर एजेंसियों ने उसे चुरा लिया। इसके बाद वह आजीवन बिना पासपोर्ट के रहा। बर्चेट ने अपनी आत्‍मकथा ‘पासपोर्ट’ के नाम से लिखी और हिरोशिमा में लगे विकिरण के असर से बेहद गरीबी में जीते हुए बगैर किसी नागरिकता के उसका निधन हुआ। उधर, अमेरिकी सैन्‍य विभाग द्वारा प्रायोजित न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के पत्रकार को दुनिया के सामने बम का सौंदर्य बखान करने के लिए पुलित्‍ज़र पुरस्‍कार से नवाज़ा गया। तभी से दुनिया भर की पत्रकारिता में दो ध्रुव कायम हो गए- लॉरेन्‍स की और बर्चेट की पत्रकारिता। अब आपको तय करना है कि आप क्‍या बनना चाहेंगे- विलियम लॉरेन्‍स या विल्‍फ्रेड बर्चेट?

(P Sainath, कॉन्‍सटिट्यूशन क्‍लब, दिल्‍ली, 30.08.2014)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here