समाजातील अनेक घटक दिवाळीचा आनंद साजरा करीत असतात तेव्हा पत्रकार,पोलिस,फायरबिग्रेडची मंडळी ड्युटीवर असते.दिवाळी असो की,अन्य सणवार अनक पत्रकारांना सुटीही मिळत नाही.सुटी न मिळाल्यानं आपल्या गावाकडं आईबरोबर दिवाळी साजरी करण्यासाठी जाऊ न शकलेल्या एका पत्रकाराचे दुःख देवेश तिवारी यांनी खालील कवितेतून व्यक्त केलं आहे.ही कविता बहुसंख्य पत्रकारांचे दुःख व्यक्त करणारी असल्याने मुद्दाम बातमीदारच्या वाचकांसाठी देत आहोत
मां तू नाराज न होना
इस दिवाली मैं नहीं आ पाउंगा
तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाउंगा
दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा
शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा
तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार है
और यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है
मैं जानता हूं
पड़ोसी बच्चे पटाखे जलाते होंगे
तोरन से अपना घर सजाते होंगे
तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी
मेरे आने की फरियाद करती होगी
मैं जहां रहूं मेरे साथ तेरा प्यार है
तू जानती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है
भोली मां मैं जानता हूं
तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है
मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है
बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा
पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा
तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है
तू समझती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है
मैं समझता हूं
मां बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा
अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा
तू गर्व कर मां
कि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी
तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी
लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है
तू जानती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है
देवेश तिवारी
deveshtiwaricg@gmail.com