मजिठियाः सुप्रिम कोर्टाचा निकाल

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1. श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955 (यहां संक्षिप्त में अधिनियम) देश भर के श्रमजीवी पत्रकारों और समाचारपत्र स्थापनाओं में कार्यरत अन्य व्यक्तियों सेवा की शर्तों को विनियमित/रेगूलेट करने के लिए किया गया था। यह अधिनियम अन्य विषयों में(इंटर एलिया), ग्रेच्यूटी के लिए पात्रता,  काम के घंटे, छुट्टी के साथ-साथ श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार अखबार कर्मियों को देय वेतन/मजदूरी निर्धारण के निपटारे के लिए कानून की एक व्यापक रचना है, जैसा कि हो सकता है।

जहां तक कि वेतन/मजदूरी के निर्धारण और संशोधन का संबंध है, अधिनियम की धारा 9 के तहत गठित वेतन बोर्ड द्वारा श्रमजीवी पत्रकारों से जुड़े वेतनमान/मजदूरी के ऐसे निर्धारण या संशोधन का कार्य किया जाता है। वेतनबोर्ड की सिफारिशों को अगर स्वीकार किया जाता है, तो अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा इसे अधिसूचित किया जाता है। अधिनियम की धारा 12 के तहत जारी केंद्र सरकार के आदेश के संचालन में आने पर प्रत्येक श्रमजीवी पत्रकार को उस दर पर वेतन/मजदूरी दी जाएगी, जो इस आदेश में इस आदेश में निर्दिष्ट की गई दर से कम नहीं होगी, यह प्रावधान धारा 13 मुहैया करवाती है। अधिनियम का अध्याय 2 क (Chapter IIA) समाचारपत्र स्थापनाओं के गैरपत्रकार कर्मचारियों से  जुड़े एक समान((pari materia/श्रमजीवी पत्रकारों की तरह) प्रावधानों को समाहित किए हुए है।

11. इस चरण में मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड के खंड 20जे, जो मौजूदा कार्यवाही में विवाद के मुख्य क्षेत्रों में से एक है, पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा सकता है।

“20जे संशोधित वेतनमानसभी कर्मचारियों पर 1 जुलाई 2010 से लागू होगा। हालांकि यदि कोई कर्मचारी इन अनुशंसाओं के प्रवर्तन के लिए अधिनियम की धारा 12 के तहत सरकारी अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से तीन हफ्तों के भीतर अपने मौजूदा वेतनमान और वर्तमान परिलब्धियों/प्रतिभूतियों को बनाए रखने का विकल्प चुनता है, तो वह अपने मौजूदा वेतनमान तथा ऐसी परिलब्धियों को बनाए रखने का पात्र होगा।”

12. मजीठिया वेजबोर्ड ने यह भी विनिर्दिष्ट/दर्शाया किया था कि तीन पूर्ववर्ती लेखा वर्षों में जो प्रतिष्ठान लगातार भारी नकदी हानि से पीडि़त हैं उन्हें बकाए के भुगतान में छूट दी जाएगी, जो अवार्ड के क्लॉज/खंड 21 से स्पष्ट होता है नीचे सारगर्भित किया गया है।

“पूर्वव्यापी/भूतलक्षी प्रभाव के क्रियान्वित किए जाने के कारण इस अवार्ड/पंचाट के प्रवर्तन/लागू होने की तारीख से देय बकाया, यदि हो, का भुगतान इस अवार्ड के प्रवर्तन की तरीख के प्रत्येक छह माह बाद तीन समान किश्तों में किया जाएगा तथा पहली किश्त का भुगतान तीन महीने के भीतर होगा; बशर्ते,इस अवार्ड/पंचाट के कार्यान्वयन की तारीख से पूर्व के तीन लेखा वर्षों में लगातार भार नकद नुकसान झेल रहे समाचारपत्र प्रतिष्ठान को किसी भी बकाए के भुगतान से छुट दी जाएगी। हालांकि, इन समाचारपत्र प्रतिष्ठानों को इस अवार्ड/पंचाट के कार्यान्वयन की तारीख  अर्थात 1जुलाई 2010 से, अपने कर्मचारियों का वेतन पुनरीक्षित वेतनमान में नोशनल/अनुमानित आधार पर निर्धारित करना होगा।”

16. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा सिफारिशों को स्वीकार करने और अधिसूचना जारी किए जाने के बाद श्रमजीवी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड के तहत अपना वेतन/मजदूरी प्राप्त करने के हकदार हैं। यह, अवमानना याचिकाकर्ताओं के अनुसार, अधिनियम की धारा 16 के साथ धारा 13 के प्रावधानों से होता है, इन प्रावधानों के तहत वेजबोर्ड की सिफारिशें, अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित होने पर, सभी मौजूदा अनंबधों के साथ श्रमजीवी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को नियंत्रित करने वाले विशिष्ट अनुबंध/ठेका व्यवस्था को अधिलंघित  (Supersedes) करती है या इसकी जगह लेती है।

वेजबोर्ड द्वारा अनुसंशित, जैसे कि केंद्र सरकार द्वारा मंजूर और स्वीकृत वेतन/मजदूरी को संबंधित श्रमजीवी और गैर पत्रकार कर्मचारियों के अधिनियम द्वारा गारंटी दी जाती है। केवल अधिक लाभकारी/फायदेमंद और अनुकूल दरों को अपना कर ही अधिसूचित वेतन/मजदूरी को निर्गत/खत्म किया जा सकता है। इसलिए, अवमानना याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि पिछली मजदूरी संरचना द्वारा नियंत्रित किसी भी समझौता या परिवचन/वचन(अंडरटेकिंग), जो मजीठिया वेजबोर्ड द्वारा सुझाई गई सिफारिशों से कम अनुकूल है, वो वैध नहीं है। इसके अलावा, वाद-विवाद उठाया गया था कि कोई भी परिवचन/वचन(अंडरटेकिंग) स्वैच्छिक नहीं है, इन्हें दबाव और स्थानांतरण/बर्खास्त किए जाने के खतरे के तहत प्राप्त किया गया है। इसलिए अवमानना याचिकाकर्ताओं का निवेदन है कि उपरोक्तानुसार न्यायालय द्वारा मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को स्पष्ट किया जा सकता है।

17. जहां तक कि वेरिएवल-पे, अनुबंध/संविदा/ठेका कर्मचारियों, और वित्तीय क्षमता का संबंध है, अवमानना याचिकाकर्ताओं का मामला इस प्रकार से है कि उपरोक्त सभी मामलों को मजीठिया वेजबोर्ड द्वारा पूरी तरह से निपटाया गया है। उन सिफारिशों को मजीठिया वेजबोर्ड द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, तो कथित वजह पर कोई और बहस या विवाद के लिए कोई गुंजाईश नहीं है। अनुमोदित और अधिसिूचित वेजबोर्ड की सिफारिशें अनुबंध/संविदा/ठेका कर्मचारियों सहित सभी श्रेणियों के कर्मचारियों पर लागू होती हैं, जो वेरिएवल पे/ परवर्तित वेतन के हकदार होंगे और वेरिएवल पे के समावेश द्वारा सभी भत्तों की गणना करेंगे। सभी नियोक्ता निर्धारित अवधि से बकाया राशि का भुगतान करने के लिए भी बाध्य हैं, जब तक कि एक प्रतिष्ठान को अवार्ड/पंचाट के कार्यान्वयन की तारीख से पहले तीन पूर्ववर्ती लेखा वर्षों में भारी नकदी हानि का सामना करना पड़ रहा है, जो कि नियोक्ता द्वारा अनुमानित महज वित्तीय कठिनाइयों से अलग होना चाहिए।

22. प्रत्युत्तर में दायर किए गए विभिन्न शपथपत्रों में समाचारपत्र प्रतिष्ठानों द्वारा अपनाए गए स्टैंड/कदम से, समय-समय पर विभिन्न राज्यों के श्रम आयुक्तों द्वारा दायर की गई रिपोर्टों में किए गए बयानों से, और साथ ही दायर की गई लिखित दलीलों से और आगे दखी गई मौखिक प्रस्तुतियों से यह स्पष्ट होता है कि संबंधित समाचारपत्र प्रतिष्ठानों ने मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड हिस्से में या नहीं कार्यान्वित किया है, इसके तहत क्या इन समाचारपत्र संस्थानों ने केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत और अधिसूचित मजीठिया वेजबोर्ड, जिसे दी गई चुनौती को इस न्यायालय द्वारा रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिनांक 07.02.2014 के फैसले/जजमेेंट में निरस्त कर दिया गया है, की गुंजाईश और दायरे को माना है। दृढ़मत है कि अवार्ड के गैर-कार्यान्वयन या आंशिक कार्यान्वयन को लेकर जो आरोप है, जैसा कि हो सकता है, स्पष्ट रूप से विशेष तौर पर संबंधित समाचारपत्र संस्थानों की अवार्ड की समझ से उपजा है, यह हमारा विचारणीय नजरिया है कि संबंधित प्रतिष्ठानों को रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिनांक 07.02.2014 को दिए गए फैसले/जजमेेंट की जानबूझकर अव्हेलना का जिम्मेवार नहीं ठहरया जा सकता है। अच्छा रहेगा, कथित चूक को बदल कर इस न्यायालय द्वारा बरकरार रखे गए अवार्ड की गलत समझ के तौर पर जगह दी जाए। इसे जानबूझकर की गई चूक नहीं माना जाएगा, ताकि न्यायालय की अवमानना अधिनियम,1971 की धारा 2बी में परिभाषित सिविल अवमानना के उत्तरदायित्व को अकर्षित किया जा सके। यद्यपि कथित चूक हमारे लिए स्पष्टत: साक्ष्य है,किसी भी समाचारपत्र प्रतिष्ठान को जानबूझकर या इरादतन ऐसा करने के विचार की गैरमौजूदगी में अवमानना का उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी ओर वे अवार्ड को इसकी उचित भावना और प्रभाव में, इस रोशनी के साथ कि हम अब क्या राय/समझौता प्रस्तावित करते हैं, लागू करने का एक और अवसर पाने के हकदार हैं।

23. मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को इस अदालत ने दिनांक 07.02.2014 को रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिए गए फैसले में मंजूरी दे दी गई है। इसलिए, इस अवार्ड को पूर्ण रूप से लागू किया जाना है। हालांकि यह सही है कि संबंधित मुद्दों (i) खंड 20जे, (ii)क्या पुरस्कार अनुबंधित कर्मचारियों पर लागू होता है, (iii) क्या इसमें वेरिएवल पे/ परवर्तित वेतन शामिल है और (iv) वित्तीय क्षरण/घाटे की सीमा जो कि बकाए के भुगतान को रोकने के लिए उचित होगी, को विशेष रूप से किसी भी अवार्ड या इस न्यायालय के फैसले में नहीं निपटा गया है, इसमें कोई संदेह नहीं है हो सकता है कि अवार्ड की शर्तों के क्षेत्र और दायरे की पुनरावृत्ति जरूरी और उचित होगी। न्यायलय के आदेश(ओं) का उचित और पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हम इसके बाद ऐसा करने का प्रस्ताव करते हैं।

24. जहां तक कि अधिनियम के प्रावधानों के साथ पढ़े जाने वाले अवार्ड के अभी तक के अत्याधिक विवादास्पद मुद्दे क्लॉज 20(जे) का का स्वाल है, यह स्पष्ट है कि अधिनियम की धारा 2(सी) में परिभाषित प्रत्येक अखबार कर्मचारी को अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित और अधिसूचित वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत वेतन/मजदूरी प्राप्त करने की गारंटी का हकदार बनाता है। अधिसूचित वेतन/मजदूरी, जैसा कि हो सकता है, सभी मौजूदा अनुबंधों की जगह लेती है(supersedes करती है)।  हालाकि विधायिका ने धारा १६ के प्रावधानों को शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया है कि मजदूरी तय होने और अधिसूचित होने के बावजूद , संबंधित कर्मचारी के लिए अधिनियम की धारा 12 की अधिसूचना के मुकाबले उसे अधिक फायदा देने वाले/अनुकूल किसी लाभ को स्वीकार करने का अवसर हमेशा खुला रहेगा। मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड का क्लॉज 20(जे), इसलिए, उपरोक्त रोशनी में पढऩा और समझना होगा। अधिनियम के तहत एक कर्मचारी को जो देय है, उससे कम प्राप्त करने के विकल्प की उपलब्धता पर  अधिनियम खामोश है। इस प्रकार का विकल्प वास्तव में आर्थिक छूट के सिद्धांत के दायरे में है, संबंधित कर्मचारियों के विशिष्ट स्टैंड/दृढ़मत को ध्यान में रखते हुए वर्तमान मामले में ऐसा मुद्दा नहीं उठता है, जो वर्तमान मामलों में उनके द्वारा तैयार की गई कथित रूप से अनैच्छिक प्राकृति की अंडरटेकिंग(परिवचन/वचन) से संबधित है। इसलिए अधिनियम की धारा 17 के तहत तथ्यों की पहचान करने वाली अथारिटी/प्राधिकरण द्वारा इसके तहत उत्पन हो रहे विवाद का निराकरण किया जाना चाहिए, जैसा कि बाद में व्यक्त/विज्ञापित किया गया है।

25. विधायिका के इतिहास से संबंधित किसी भी घटना में और अधिनियम को अधिनियमित/लागू करने से प्राप्त होने वाले उद्देश्य अर्थात अगर समाचारपत्र कर्मचारियों के लिए उचित मजदूरी नहीं है, तो न्यूनतम उपलब्ध करवाने के लिए, विजय कॉटन मिल्ज लि. और अन्य बनाम अजमेर राज्य (एआईआर1955 एससी 33) मामले में घोषणा/निर्णय के अनुपात के तहत न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत अधिसूचित तय मजदूरी को बिना-मोलभाव के कारण मौजूदा अधिनियम के तहत स्पष्ट रूप से नियंत्रित किया जाएगा।  बिजय कॉटेन मिल्ज़ लिमिटेड(सुप्रा) मामले की रिपोर्ट में पैरा चार, जोकि विशिष्ट सूचना के लिए उपरोक्त मुद्दे से जुड़ता है, नीचे दिया गया है:
“4. यह शायद ही विवादित हो सकता है कि श्रमिकों को जीने के लिए मजदूरी सुरक्षित करना, जो न केवल महज शारीरिक निर्वाह परंतु साथ ही स्वास्थ्य और मर्यादा का पोषण/अनुरक्षण करता है, जनता के सामान्य हित के अनुकूल है। हमारी संविधान के अनुच्छेद 43 में समाहित राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक है। यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि 1928 में जिनेवा में एक न्यूनतम मजदूरी फिक्सिंग सम्मेलन आयोजित किया गया था और इस सम्मेलन में पारित किए गए प्रस्तावों को अंतरराष्ट्रीय श्रम संहिता में शामिल किया गया था। कहा जाता है कि इन प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिए न्यूनतम वेतन अधिनियम परित किया गया था। साउथ इंडिया एस्टेट लेबर रेजोल्यूशंस आर्गेनाइजेशनबनाम स्टेट आफ मद्रास(एआईआर 1955 एमएडी45,पृष्ठ47) के अनुसार:
यदि श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी के आनंद से सुरक्षित किया जाना है और वे अपने नियोक्ता के शोषण से सुरक्षित किए जाने हैं, तो यह पूरी तरह जरूरी है कि उनके अनुबंध की आजादी पर पाबंदियां लगाई जानी चाहिए और इन पावंदियों को किसी भी मायने में अनुचित नहीं ठहरया जा सकता। दूसरी ओर, नियोक्ताओं को शिकायत करते नहीं सुना जा सकता, अगर वे अपने मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने को मजबूर करते हैं, भले ही मजदूर अपनी गरीबी और असहाय होने के कारण कम मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं।  (जोर/Emphasis हमारा है)

26. अधिनियम के प्रावधानों में या वेजबोर्ड अवार्ड की शर्तों में ऐसा कुछ नहीं है, जो हमें अवार्ड के लाभ देने के लिए अनुबंध या ठेका कर्मचारियों को छोड़ कर, नियमित कर्मचारियों तक सीमित करेगा। इस संबंध में हमने अधिनियम की धारा  2(सी), 2(एफ) और 2(डीडी) में परिभाषित समाचारपत्र कर्मचारी, श्रमजीवी पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों की परिभाषा पर ध्यान दिया है। जहां तक वेरिएबल-पे का संबंध है, इस पर पहले ही उपरोक्त पैरा 7 में ध्यान दिया गया है और सारगर्भित किया गया है, जब यह न्यायालय वेरिएवल-पे की अवधारणा पर चर्चा की, तो विचार किया कि इस राहत का मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड में उचित और न्यायसंगत निरुपण किया गया है। इसलिए वेरिएबल-पे के संबंध में कोई अन्य विचार लेकर इस लाभ को दबाने/रोकने का कोई प्रश्र नहीं उठता है। वास्तव में अवार्ड के प्रासंगिक भाग का एक पठन यह दर्शाता है कि वेरिएबल-पे की अवधारणा, जो अवार्ड में लागू की गई थी, छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट में निहित ग्रेड-पे से ली गई है और इसका उद्देश्य अधिनियम के दायरे में आने वाले श्रमजीवी पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों को याथासंभव केंद्र सरकार के कर्मचारियों के समतुल्य लाना है। जहां तक कि भारी नकदी हानि की बात है, हमारा मानना है कि बिलकुल वही भाव स्वयं इंगित करता है कि वह वित्तीय कठिनाइयों से अलग है और इस तरह की हानि प्रकृति में पंगु होने की सीमा से अलग, अवार्ड में निर्धारित समय की अवधि के अनुरुप होने चाहिए। यह तथ्यात्मक सवाल है जिसे केस टू केस या मामला दर मामला निर्धारित किया जाना चाहिए।

27. इस मामले में सभी संदेहों और अस्पष्टताओं को स्पष्ट करते हुए और यह मानते हुए कि किसी भी समाचार पत्र प्रतिष्ठान को, हमारे समक्ष मामलों के तथ्यों में, अवमानना करने का दोषी नहीं ठहरया जाना चाहिए, हम निर्देश देते हैं कि अब से मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को लागू न किए जाने या अन्यथा के संबंध में सभी शिकायतों को अधिनियम की धारा 17 के तहत मुहैया करवाए गए तंत्र के अनुसार निपटाया जाएगा। न्यायालयों के अवमानना क्षेत्राधिकार या अन्यथा के इस्तेमाल के लिए दोबारा न्यायालयों से संपर्क करने के बजाय अधिनियम के तहत मुहैया करवाई गई प्रवर्तन/इन्फोर्समेंट और उपचारकारी मशीनरी द्वारा ऐसी शिकायतों का समाधान किया जाना अधिक उचित होगा।

28. जहां तक कि तबादलों/ बर्खास्तगी के मामलों में हस्तक्षेप की मांग करने वाली रिट याचिकाओं के रूप में, जैसा कि मामला हो सकता है, से संबंध है, ऐसा लगता है कि ये संबंधित रिट याचिकाकर्ताओं की सेवा शर्तों से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय के अत्याधिक विशेषाधिकार रिट क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल इस तरह के सवाल के अधिनिर्णय के लिए करना न केवल अनुचित होगा परंतु ऐसे सवालों को अधिनियम के तहत या कानूनसंगत प्रावधानों(औद्योगिक विवाद अधिनियमए 1947 इत्यादि), जैसा कि मामला हो सकता है, के तहत उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष समाधान के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।

29. उपरोक्त राशनी में, सभी अवमानना याचिकाओं के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई रिट याचिकाओं का उत्तर मिल गया होगा और उपरोक्त संबंध में इनका निपटारा किया जाता है।

नई दिल्ली
19 जून, 2017

अनुवाद : रविंद्र अग्रवाल, धर्मशाला 
संपर्क: 9816103265

भडासवरून साभार

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